Translate

Search This Blog

my lead

230342f92a3d4e1cead36d395b2d7b45

Friday, September 11, 2020

हमारे बच्चें हमारी जिंदगी है ,हमारी दुनिया है। स्कूल भेजने का सवाल ही नहीं उठता !@मनोज बत्तरा -बर्बाद इंडिया / मनोज बत्रा (एडिटर)

21 सितम्बर से ,आंशिक रूप से स्कूलों को खोलने का, सरकार का मन ! 

साढ़े 44 लाख से अधिक कोरोना -केस,और कई तरह की छूट,आश्चर्यजनक और विचारणीय प्रश्न है!

हमारे बच्चें हमारी जिंदगी है ,हमारी दुनिया है। स्कूल भेजने का सवाल ही नहीं उठता !@मनोज बत्तरा 

दिनांक -11 सितम्बर ,2020 . 
राजपुरा -चंडीगढ़ (पंजाब ). (ईश्वर आज़ाद द्वारा ). 
      
     दिनांक 10 सितम्बर ,2020 के 'दैनिक ट्रिब्यून 'के सम्पादकीय 'सतर्कता संग शिक्षा 'पढ़कर ,वर्तमान में शिक्षा की दशा और दिशा ने ,'बर्बाद इंडिया न्यूज़ 'के मुख्य संपादक और पत्रकार मनोज बत्तरा का ध्यान आकर्षित किया।लेख में बताया गया कि सरकार ने आगामी 21 सितम्बर से ,कक्षा नौवीं से लेकर बारवीं कक्षा तक के छात्रों हेतू स्कूलों को आंशिक रूप से खोलने का मन बनाया है। लेख में कोरोना के वैश्विक -संकट के चलते ,वर्तमान में छात्रों की मनोदशा और चिंताओं का भी जिक्र है। लेख में ,ग्रामीण इलाकों में ख़राब इंटरनेट,बिजली -समस्या ,गरीबी आदि के कारण ऑनलाइन -शिक्षा में आ रही ,रुकावटों को भी प्रमुख रूप से उजागर किया गया है। 



     बत्तरा ने कहा कि देश में यदि कोरोना -केस लाखों में है ,तो एक अभिभावक की हैसियत से ,सरकार के ,इस मूर्खता -पूर्ण फैसले का स्वागत और समर्थन मैं कभी नहीं करूँगा। हमारे बच्चें हमारी जिंदगी है ,हमारी दुनिया है। स्वैछिक विकल्प और अनुमति का प्रश्न ही नहीं उठता। माना कि कोरोना -संक्रमण के बाद ,लागू लॉकडाउन ने देश में शिक्षा के अधिकार के दायरों को संकुचित कर दिया है। पर इस बात की क्या गारंटी है कि बच्चें और स्कूल ,नियमों के पालन में लापरवाही नहीं करेंगे और बच्चों को कोरोना -संक्रमण नहीं होगा। देश में 12000 कोरोना -केसों के आने पर तो बड़ा  लॉकडाउन लगा दिया जाता है और वर्तमान में साढ़े 44 लाख से अधिक कोरोना -केस आने पर ,कई तरह की छूट दी जा रही है -ये आश्चर्यजनक और विचारणीय प्रश्न है। 
     बत्तरा के उक्त आशय का पत्र ,आज 'दैनिक ट्रिब्यून 'के चंडीगढ़ ,करनाल और गुड़गांव तीनो संस्करणों में ,करोड़ों पाठकों हेतू 'ट्रिब्यून 'के सम्पादकीय -पृष्ठ पर ,'आपकी राय 'कॉलम के अंतर्गत प्रकाशित हुआ।बत्तरा का कहना है कि लेखन और पत्रकारिता के इस मुकाम पर ,वे बिना मार्ग-दर्शन और स्वप्रेरणा से पहुंचे है ,जिसके पीछे उनकी वर्षों की अथक मेहनत और समाज के प्रति दायित्व -बोध है।