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Friday, July 24, 2020

बाप में भी होती है ममता -वात्सल्य !-बर्बाद इंडिया / मनोज बत्रा (एडिटर)

सम्पादकीय- 

आचार्य मनोज बत्तरा के कीपैड से !


आप बीता एक सच्चा और मार्मिक प्रसंग! 
    

सहृदय बाप में भी होती है ममता -वात्सल्य !

    "मैया मोरी ,मैं नाहिं माखन खायों !"


     -"तो, किसने खायों ?"

     "मैया मोरी ,कबहुँ बढ़ेगी चोटी ?
     कितनी बार मोहें दूध पियत ,अबहुँ हैं यह छोटी !"

    -"मेरे लड्डू गोपाल !जेकर अमूल दूध पियत,तबहूं बढ़ती न ,तोरी चोटी !" 




     -तो देखा आपने ! वात्सल्य को लिखते -लिखते ,मुझमें भी ममता ,वात्सल्य और भक्ति के भाव आ गए !दरअसल , भक्ति -काल के शिरोमणि और सर्वोत्कृष्ट महाकवि सूरदास जी ,वात्सल्य का कोना -कोना झाँक आयें है !32 विद्याओं और 64 कलाओं से निर्मित ,महान कर्मयोगी  व विष्णु के पूर्ण अवतार भगवान् श्री कृष्ण की भक्ति में डूबे ,जन्मांध सूरदास जी ने अपने मन की आँखों से ,यशोधा मैया और बाल कृष्ण के संबंधों ,लीलाओं और वात्सल्य के उक्त जैसे अनेकों दुर्लभ और अद्भुत चित्र उकेरें है !उन जैसा कवि पुनः मिल पाना संभव नहीं है !
      अब ये भूमिका प्रस्तुत करने के बाद ,आधुनिक युग की "मीरा " महादेवी वर्मा जी के जीवन के उस प्रसंग की ओर , आपका ध्यान आकृष्ट करना चाहता हू ,जिसे बहुत कम लोग जानते है !

    "मैं लेटी थी ,वो मेरे ऊपर लेटा था !
     मैं उठ न सकी ,क्योंकि वो उठ न सका ,क्योंकि वो मेरा बेटा था !"
                                                                           (-महादेवी वर्मा )

      -ये जवाब था ,महादेवी वर्मा जी का ,उन श्रोताओं को, जो कवि-सम्मेलन में उनका काफी देर से इन्तजार कर रहे थे ,उनसे नाराज हो रहे थे !
     महादेवी वर्मा जी के जवाब में ,मर्यादा का अतिक्रमण ,सूक्ष्म -बुद्धि और वाक् -चातुर्य दिख रहा है ,किन्तु वात्सल्य का ऐसा अद्भुत उदाहरण भी, क्या हमें कहीं ओर देखने को मिला है ?

     "आंगन में फूल खिला था कोई ,
     महक माली की थी ,
     पर लूट गया भँवरा !"

      -ये वर्षों पहले मैंने लिखा था ,पड़ोस में हुई, जन्म के समय हुई, एक नवजात शिशु की मौत पर !

     "....जीवन ऐसे भी है,जो जिए ही नहीं !
     जिनको जीने से पहले फिजां खा गई !
     जिंदगी का सफ़र, है ये कैसा सफ़र!
     कोई समझा नहीं ,कोई जाना नहीं। .... "
             (-फिल्म -सफ़र /गायक -किशोर कुमार )

     उस समय मुझे लिखने का नया-नया शौक लगा था !कल्पना -शक्ति मुझमें बहुत थी!उस बच्चें की मौत के प्रति मुझमें जिज्ञासा रही !संवेदना ,दुःख -दर्द था ,पर उतना नहीं ,जितना किसी अपने  के जाने का हुआ मुझे !
 दुनिया के रंग,लोगो का असली चेहरा ,असली संवेदना ,असली दुःख-दर्द, मुझे उत्कर्ष ने सिखाया !उत्कर्ष-मेरा बेटा !36 दिन का मेहमान!



     मुझे उन दिनों समझ कम ही थी ,उस समय दादी के कहने में आकर ,मिसेज की पहली डिलीवरी हमने सरकारी अस्पताल में करवाई !उचित ट्रीटमेंट और सुविधाओं के अभाव आदि के चलते ,बच्चा नाड़वे के साथ लिपटा हुआ पैदा हुआ! डॉक्टरों ने नाड़वा काटकर ,बच्चे को अलग किया ,किन्तु बेटे को साँस की तकलीफ शुरू हो गई!लेडी डॉक्टर ने मुझसे क्षमा भी मांगी ,कि वह जच्चा-बच्चा की ठीक से केयर न कर सकी !उसे डर था कि हम उस पर कोई केस न कर दें !जीवन-मरण ईश्वर  के  हाथों में होता है ,यह सोचकर हमने डॉक्टर को कुछ नहीं  कहा!और हम जल्दबाजी में ,एम्बुलेंस करके, बच्चे को पी जी आई ,चंडीगढ़ ले गए !रास्ते में बच्चे को सांस की तकलीफ बढ़ रही थी!किन्हीं कारणों से ,एम्बुलेंस में रखा ऑक्सीजन -सिलेंडर बच्चे  को लग नहीं पाया!बच्चे की मौत के डर से हम काफी घबरा गए !हमने एम्बुलेंस की सारी खिड़कियां जल्दी -जल्दी खोल डाली ,ताकि बच्चा ताज़ी, तेज हवा में सांस ले सके !घबराहट में उस समय हमे यही सूझा !हमारे पास दूसरा कोई विकल्प भी नहीं था!बस, ईश्वर का सहारा था और हम  उसी से प्रार्थना करते हुए आगे बढ़ रहे थे!
    बच्चे के दादा ने जन्म के समय,उत्कर्ष की जीभ पर शहद से ॐ लिखा और उसका 'उत्कर्ष' नामकरण किया!बाद में ,मैंने कहीं पढ़ा था कि जन्म के समय बच्चे को कोई खाद्य पदार्थ या पेय पदार्थ नहीं  देना चाहिए,क्योंकि इससे उसे नुक्सान होता है !
    दिखने में बेहद सुन्दर ,गोल -मटोल,हल्का-फुल्का। लाल होंठो वाला था , मेरा बेटा !उसके बेहद सहनशील होने का प्रमाण भी , उस समय हमें मिला !दिन में 3-4 बार ग्लूकोस आदि के लिए, जब उसे सुइंया चुभाई जाती ,तो वह रोता  नहीं था!
    बेटे के दिल में 3 m m का छेद था !ट्रीटमेंट के लिए  हम बच्चे को एम्स अस्पताल ,दिल्ली तक ले गए! और मेरे मन में ये बात  भी चल रही थी कि चाहे मुझे अपने शरीर के अंग भी बेचने पड़े ,अमेरिका तक भी ,बच्चे  को बचाने के लिए ,इलाज करवाऊंगा !और ये  एक बाप की बच्चे के लिए ममता - वात्सल्य ही था कि मैंने अपने चाचा से, अपने 50 हज़ार रूपये लेने के लिए कहा -सुनी भी की!
   अंततः बच्चे को इन्फेक्शन हो गया !खून का रंग काला!होंठो का रंग उस समय शायद नीला होने लगा था!बच्चे ने 5 -6 दिन तक पेशाब नहीं किया ,तो नर्सों ने उसके अंग में ,मुलायम और बारीक क्लिनिकली रबड़ की ट्यूब डालकर ,उसका पेशाब बाहर निकाला !उसके अंतिम दिनों में, फैमिली के लोग घर आएं हुए थे !मैं बच्चे के पास अकेला था !उसे सांस की बेहद तकलीफ शुरू  हो गई!डॉक्टर्स ने  कह दिया कि  सांस वाला पम्प रुकना नहीं चाहिए!18 घंटे तक लगातार ,बिना रुके मैं सांस वाला पंप चलाकर ,उसे सांस देता रहा !हाथ का कचूमर बन चुका था!न जाने कैसे सांस वाला पंप, 18 घंटे तक चलाने को,मुझमें इतनी हिम्मत आ गई थी!मुझे था कि यदि मेरा हाथ रुका ,तो बच्चा बचेगा नहीं!ईश्वर से बार-बार प्रार्थना कर रहा था कि मेरे पिछले और अगले समस्त जन्मों के समस्त पुण्य मेरे बेटे को दे दें ,और मेरे बेटे को बचा दें!

UAE-based Indian couple, baby die in Oman accident | Uae – Gulf News

   36 वें दिन नौसिखिए डॉक्टर्स की टीम आई  और ड्रामें  करते हुए उन्होंने ऑक्सीजन तेज कर दी !पहले उस समय मुझे समझ नहीं आया कि उन्होंने क्या किया !... फिर शुरू हुआ बच्चे को बचाने  का ड्रामा!... सब ख़त्म हो चुका था !शायद जानबूझकर डॉक्टर्स ने बच्चे  को मार दिया !सारी उम्र ये सवाल साथ चलता रहा कि क्या मेडिकल साइंस में लाइलाज बिमारियों में रोगी को मारने का अधिकार होता है?
   उसके मरते वक़्त कहीं दूर मद्धम -मद्धम नगाड़े बज रहे थे!मैं सुन्न था!साक्षी -भाव से मेरी आत्मा, मेरे शरीर से अलग होकर, बेटे की मौत के दृश्य को देख रही थी !
  .... परिवार के लोग और कुछ लोकल रिश्तेदार आ चुके थे!हम सब दैनिक भास्कर ,चंडीगढ़- कार्यालय के समीप एक शमशान -घाट में बेटे को दफनाने ले गएँ!
   बच्चे को नहला-धुलाकर ,नए कपडे पहनाकर मेरी गोद में दे दिया गया !और उसकी आत्मा की शांति के लिए मंत्रो-उच्चारण शुरू हो गए !
   इधर मैं बच्चे को चुनड़ियाँ मार रहा था !चुँगटियाँ काट रहा था!और मन में बोल  रहा था कि बेटे ,उठ !नहीं तो ,अब तुझे मिट्टी में दफना देंगें !... नहीं उठा वो !क्यों उठता वो?36 दिन का  साथ  ही तो था हमारा! 36 दिन में जिंदगी और अपने की मौत का सबक मुझे सीखा गया वो!दुनिया का असली चेहरा दिखा गया वो!एक बाप  में भी ममता - वात्सल्य जगा गया वो !हमारी गोद उस पुण्य आत्मा  को पसंद नहीं आई ,तो मैंने उसको धरती माता की गोद  में अर्पित  कर दिया !

My birth story: I am a dad and I delivered my baby by accident ...

   .... मिसेज टूट चुकी थी!उसे सँभालने की जिम्मेवारी मेरी थी !उसको दिलासा देता रहा और मैंने खुद के आंसू पी लिए !
  और इस सारे प्रसंग में लोगो और रिश्तेदारों का सच भी सामने आया!कुछ ने पैसों की सहायता तो देनी चाही ,पर सुसराल और अपने परिवार केअलावा, कोई भी एक रात, हमारे साथ अस्तपताल में, साथ देने के लिए नहीं रुका !चाचे के साथ उन दिनों प्रॉपर्टी को लेकर उठापटक चल रही थी !वो ,दादी और 2 बुआओँ का परिवार बच्चे को देखने तक न आया!एक कजिन साली ने तो न जाने क्यों ,बच्चे की छठी की मिठाई का डिब्बा वापिस भिजवा दिया!बच्चे की मौत पर सब रोने आ गए !ऐसे सब लोगों को छोड़ने का, उस समय फैसला मैंने ले लिया!आज मैं उन अनजान लोगों के साथ जीता हूँ ,जो दिल से मेरा साथ देते है !इज्जत करते है!

     "अपने ही गिराते है ,नशेमन पर बिजलियाँ !नशेमन पर बिजलियाँ !
गैरों ने आके ,दामन थाम लिया है!"

     इन ड्रामों से बिलकुल अलग ,मेरे दिल के काफी करीब मेरी एक कजिन ने मुझसे सही संवेदना और सांत्वना व्यक्त की-"मनोज !ईश्वर फिर देगा !"यह सुनकर मेरे सब्र का बाँध टूट गया और एक बाप की ममता अश्रुओं में बहने लगी!
     आज भी बेटे को याद करते हुए सोचता हु कि भगवान् तूने बेटा वापिस लेना ही था ,तो दिया ही क्यों था!क्या ये उसके और हमारे भी कर्म-फल थे ?हम समाचार -पत्रों में अक्सर पढ़ते है कि स्कूल -बस/वैन आदि के दुर्घटना-ग्रस्त होने से इतने बच्चों की मौत हो गई!इतने बच्चें नदी में डूब गए !हे भगवान् ,इन बच्चों को आप अपने खेल ,अपनी लीलाओं  ,कर्मफलों और मौत आदि से क्यों दूर नहीं रखते? बच्चों को बख्शकर भी तो, आपका संसार चल सकता है!बच्चें  हम माता-पिता की जिंदगी है!हमारा सहारा हैं!हमारे खिलोनें है !हमारी चेतना है और बच्चों के रूप में तेरी ही तो भक्ति है!सृष्टि को आगे बढ़ाने में ,तेरे द्वारा हमें सौंपी गई जिम्मेदारी है!

School Bus Accident in shivpuri, many child injured

    आज किसी के भी बच्चे को चहकते -महकते ,मुस्कुराते -खिलखिलाते देखता हू ,तो उत्कर्ष का गम प्राय भूल जाता हू !बच्चों की मौज-मस्ती ,तुतलाती बातें ,हंसी -मज़ाक,कलरव ,अठखेलियां ,मासूमियत ,सादगी ,भोलापन आदि तरों -ताजगी के साथ जीने की राह दिखाते है!देखने के लिए सूक्ष्म- नेत्र और भाव चाहिए ,बच्चो में ईश्वर के दर्शन हो जायेंगे!

Injury prevention - Introduction | Encyclopedia on Early Childhood ...

   बस ,मन में ये विचार /भाव आता है कि ये दूसरे के बच्चें मेरे कुछ नहीं लगते !इनमें मेरा अंश भी नहीं है !पर इन्होने मेरे चेहरे पर मुस्कान बिखेरी है !मेरे मन में स्फूर्ति भरी है!बस ,यही तो सच्चा रिश्ता है हमारे बीच!दोस्ती ,अपनापन ,सुरक्षा और केयर बनती है बच्चों के लिए!अब इसको उनको कोई रक्त -सम्बन्धी दें या कोई भी इंसान!सचमुच ,बच्चें तो सांझा होते है ,शिल्पा जी!
   समय बड़े-बड़े जख्म भर  देता है !आज उसका सही चेहरा मैं भूल गया हूँ !कभी याद  आने पर आँखें गीली हो जाती है ,जैसे कि अब लिखते -लिखते हो रही है !भाग-दौड़ ,उलझन  में हम उत्कर्ष की एक भी फोटो लें नहीं पाएं !जीवन -भर  ये अफ़सोस भी साथ चलता रहेगा !


उत्कर्ष से छोटी समिधा बिटिया !



चीफ एडिटर आचार्य मनोज बत्तरा